उपेक्षा का शिकार रविनंदन मिश्र स्मारक विधि महाविद्यालय सहरसा...


रविनंदन मिश्र स्मारक विधि महाविद्यालय सहरसा का एकमात्र विधि महाविद्यालय है। जिसकी स्थापना 1972 में सहरसा के बुद्धिजिवीयों ने इसलिए की थी कि यहां के छात्र कानून की पढ़ाई कर सकें और विधि व्यवसाय और न्यायायिक सेवा में जा सकें । लेकिन विगत बर्ष बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने मूल सुविधाओं में कमी का कारण बताकर यहां छात्रों के नामांकन पर रोक लगा दिया था। पूर्व के प्राचार्य ने इस कमी को गंभीरता से लिया ही नहीं। जिससे प्रतिवर्ष विधि स्नातक की पढ़ाई करने वाले छात्रों के उम्मीद और पानी फिर गया। अब कम संख्या में ही यहां के छात्र दूसरे विश्वविद्यालय की ओर रूख़ करते हैं। सहरसा के जनप्रतिनिधियों, सिनेट- सिंडिकेट सदस्यों एवं विश्वविद्यालय के अधिकारियों के उदासीनता के कारण अभी तक बार कौंसिल से हरी झंडी नहीं मिली है। यह महाविद्यालय भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय की अंगीभूत इकाई है। इस मुद्दे को पूर्व मंत्री नीतीश मिश्रा ने विधानसभा में उठाया था। उनकी बातों को सरकार ने सुना और भवन प्रमंडल को प्राक्कलन बनाने का निर्देश दिया था और छात्रों की समस्या को जानने के लिए निरीक्षण की बात कही गई। बार काउंसिल ने प्राचार्य के लिए एल एल एम की डिग्री, 14 फेकल्टी और 10 कमरा की अनिवार्यता को पूरा करने को कहा था। सूत्रों के अनुसार भवन प्रमंडल विभाग द्वारा 3 करोड़ 7 लाख 38 हजार 500 रुपए का प्राक्कलन भी बना और इस नक्शे को कॉलेज विकास समिति से अनुमोदित भी किया गया। लेकिन निर्माण कार्य प्रारंभ नहीं हुआ। विश्वविद्यालय के बैठक में अंगीभूत और निजी महाविद्यालय पर चर्चा तो होती है लेकिन सहरसा के इस एक मात्र विधि महाविद्यालय की चर्चा नहीं हो पाती है। जिससे सहरसा के गरीब और सामान्य परिवार के छात्रों को विधि स्नातक (एल एल बी) बनने का अवसर नहीं मिल पा रहा है। यहां के छात्र एल एल बी कर अधिवक्ता, न्याय मित्र, अपर लोक अभियोजक, निजी कंपनियों में विधि परामर्शी, न्यायिक अधिकारी बनने से वंचित रह रहे हैं। देखना है सिनेट सिंडिकेट की बैठक या 19 मार्च को विश्वविद्यालय के अधिवेशन में विधि महाविद्यालय का यह मामला उठता है या नहीं ।

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