बिहार वोटर लिस्ट रिवीजन पर सुप्रीम कोर्ट की नजर, प्रक्रिया जारी रहेगी लेकिन समय और पारदर्शिता पर उठे सवाल...


नई दिल्ली/पटना। बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया के तहत वोटर लिस्ट के अद्यतन को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। विपक्षी दलों द्वारा वोटर कटौती के आरोपों के बीच मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है, जहां अदालत ने फिलहाल इस प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है, लेकिन टाइमिंग और पारदर्शिता को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे यह साबित करें कि चुनाव आयोग गलत कर रहा है, और अगर ऐसा नहीं किया जा सकता, तो प्रक्रिया पर आपत्ति का कोई आधार नहीं है। कोर्ट ने यह भी माना कि लगभग 7.5 करोड़ मतदाताओं वाले राज्य में इस तरह की बड़ी प्रक्रिया को लेकर शंकाएं स्वाभाविक हैं।

हालांकि, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि बिहार विधानसभा चुनाव से कुछ ही महीने पहले इस प्रक्रिया की शुरुआत पर टाइमिंग को लेकर गंभीर चिंता है। अदालत ने कहा कि "प्रक्रिया से कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन इसकी टाइमिंग सवालों के घेरे में है।"

इस मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी।

प्रमाण के लिए तीन ID दस्तावेजों को मान्यता देने का सुझाव

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से यह भी कहा कि वह प्रूफ के तौर पर आधार, वोटर कार्ड और राशन कार्ड को स्वीकार करने पर विचार करे। कोर्ट ने यह सुझाव 11 दस्तावेजों की सूची में इन तीनों को विशेष रूप से शामिल करने के लिए दिया। हालांकि, चुनाव आयोग ने जवाब में कहा कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है, और इस मुद्दे पर अभी और विचार होना बाकी है।

राजनीतिक और कानूनी मोर्चे पर गर्माया मामला

बिहार में इस मुद्दे पर राजनीतिक माहौल भी गरम है। महागठबंधन और INDIA Bloc ने इसे गरीबों, दलितों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ साजिश बताया है और हाल ही में बिहार बंद और चक्का जाम का आयोजन किया गया। इस दौरान कई नेताओं को रोका गया, जिससे गठबंधन की अंदरूनी एकता पर भी सवाल उठे।

अब सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में यह मामला आगे बढ़ रहा है, और 28 जुलाई की अगली सुनवाई इस पर निर्णायक दिशा दे सकती है।

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