SCO समिट में पीएम मोदी का कड़ा रुख — पाकिस्तानी पीएम की मौजूदगी में उठाया आतंकवाद का मुद्दा...

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के समिट के दौरान आतंकवाद के ख़िलाफ़ कड़े तेवर अपनाए और सदस्य देशों से इस चुनौती के समग्र, बिना भेदभाव के समाधान की अपील की। उनके संबोधन में हालिया हिंसक घटनाओं का उल्लेख करते हुए आतंकवाद की गम्भीरता पर बार-बार ज़ोर दिया। इस अवसर पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ भी मौजूद थे, जिससे मोदी के संदेश का तात्पर्य और भी स्पष्ट नजर आया।

पीएम मोदी ने अपने भाषण में कहा कि पिछले कई दशकों से भारत आतंकवाद की पीड़ा झेलता आया है और हाल की घटनाओं ने यह दिखा दिया है कि यह समस्या अब और अनदेखी नहीं की जा सकती। उन्होंने जम्मू और कश्मीर के पहलगाम में हुए हमले का संदर्भ देते हुए कहा कि ऐसी घटनाएँ आतंकवाद की क्रूरता और मानवीय लागत को उजागर करती हैं। उनका कहना था कि आतंकवाद को किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता और इसे समर्थन देने वाले नेटवर्क और तत्वों के विरुद्ध ठोस कदम उठाने की ज़रूरत है।

अपने संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री ने यह प्रश्न भी उठाया कि क्या कुछ देशों द्वारा आतंकवाद का खुलेआम समर्थन किसी भी तरह स्वीकार्य समझा जा सकता है। उन्होंने सदस्य देशों से अनुरोध किया कि वे आतंकवाद के समर्थन और धन-समर्थन के मामलों पर सतर्क रहें तथा ऐसे तत्वों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय में पनाह न मिलने दें। मोदी ने यह स्पष्ट किया कि आतंकवाद केवल सीमाओं के भीतर सीमित समस्या नहीं है बल्कि यह अस्थिरता, मानवाधिकार हनन और क्षेत्रीय शांति के लिये गंभीर खतरा है।

समिट में मोदी के केंद्रीय संबोधन का फोकस सुरक्षा सहयोग और आतंकवाद-विरोधी प्रयासों पर रहा। उन्होंने SCO के सदस्य देशों से सूचनात्मक तथा संचालनात्मक सहयोग बढ़ाने का आग्रह किया और कहा कि साझा खुफिया आदान-प्रदान, सीमा-प्रबंध तथा कट्टरपंथ के फैलाव को रोकने के लिये समन्वित रणनीतियाँ आवश्यक हैं। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि आतंकवाद की जड़ों तक पहुँच कर उसे आर्थिक व राजनैतिक सहायता से कट दिया जाना चाहिए, ताकि वह पुनः पनपने का अवसर न पाए।

भारत और पाकिस्तान के बीच पुराने आरोप-प्रत्यारोप के परिप्रेक्ष्य में प्रधानमंत्री के शब्दों को ध्यान से देखा जा रहा है। मोदी ने समिट में किसी देश का नाम लेकर सीधे आरोप नहीं लगाए, फिर भी उनके बयान का इशारा उन तत्त्वों की ओर था जिन पर भारत ने अतीत में निरन्तर चिंता जताई है। राजनयिक स्तर पर इस तरह के सार्वजनिक संदेशों का असर दोनों पक्षों के मनोबल और बहुपक्षीय मंचों पर भविष्य की वार्ताओं पर गहरा प्रभाव डाल सकता है।

सदस्य देशों के बीच व्यापक चर्चा के अन्य आयाम भी उठे — आर्थिक सहयोग, ऊर्जा साझेदारी और क्षेत्रीय विकास पर बातचीत जारी रही — परंतु इस सत्र में सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी समन्वय को विशेष महत्व दिया गया। समिट के बंद दरवाज़ों के भीतर हुई द्विपक्षीय वार्ताओं में भी सुरक्षा से जुड़े पहलुओं पर जोर रहा, जहाँ विभिन्न प्रतिनिधिमंडलों ने आपसी संप्रेषण और पुलिस- तथा न्यायिक सहयोग के तरीके तलाशने पर चर्चा की।

विश्लेषकों का कहना है कि SCO जैसे बहुपक्षीय मंच पर आतंकवाद पर तगड़ा रुख दिखाई देना इस बात का संकेत है कि सदस्य देशों के बीच सुरक्षा चिंताएँ बढ़ती जा रही हैं और वे अब पारंपरिक आर्थिक-सामाजिक एजेंडों के साथ-साथ अस्थिरता के कारणों पर भी अधिक गंभीरता से विचार कर रहे हैं। ऐसे मंच पर समस्याओं को सार्वजनिक रूप से उठाना सदस्यों को आपसी ज़िम्मेदारी और जवाबदेही की ओर धकेलता है, जिससे नीति निर्माण में भी परिवर्तन की संभावनाएँ बनती हैं।

प्रधानमंत्री के संदेश का अन्तरराष्ट्रीय महत्व भी है: जब किसी बहुपक्षीय सभा में आतंकवाद को मानवता के ख़िलाफ साझा चुनौती के रूप में चित्रित किया जाता है, तो यह अन्य सदस्यों और वैश्विक समुदाय को मिलकर समस्या के समाधान की आवश्यकता की याद दिलाता है। इससे यह संदेश भी जाता है कि आतंकवाद-विरोधी प्रयासों में केवल कूटनीतिक निंदा ही पर्याप्त नहीं; ठोस कार्रवाई, वित्तीय रोकथाम और सहयोगी सुरक्षा उपाय अपनाने होंगे।

समिट के बाद जारी होने वाले किसी भी संयुक्त वक्तव्य या निर्णयों में आतंकवाद विरोधी भाषा की समावेशिता और उसके लागू होने के तरीके भविष्य में स्पष्टता देंगे कि क्या सदस्य देश केवल बयानबाजी तक सीमित रहेंगे या वास्तविक नीतिगत सहमति भी सामने आएगी। फिलहाल, पीएम मोदी का समिट में उठाया गया यह मुद्दा — विशेषकर पाकिस्तान के नेतृत्व की मौजूदगी में — इस बात का संकेत है कि भारत बहुपक्षीय मंचों पर अपनी सुरक्षा चिंताओं को दृढ़ता से सामने लाता रहेगा और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से सहयोग की माँग जारी रखेगा।


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